Thursday, April 22, 2010

यह आई पी एल का किस्सा क्या है ??

कम लोग जानते हैं कि अमेरिका एक धर्म-पारायण देश है। वहां के अनेक राज्यों में जुआ खानों पर प्रतिबन्ध है । बस एक अमरीकी शहर है जो भोग विलास के सभी कल्पनीय आकर्षणों से सुसज्जित है जिसे आप इन्द्रपुरी कह सकते हैं , अमरीकी लोग इसे लॉस वेगस कह कर पुकारते हैं। लॉस वेगस समूचे विश्व की जुआ राजधानी है । यहाँ के सभी पांच सितारा, सात सितारा होटल विशाल जुआ-घर हैं। अल्प-वस्त्री, निर्वस्त्री देवी कायायें हरेक मुद्रा एवं भंगिमा में मंच के ऊपर या आपके इर्द गिर्द संगीत के साथ झूमती रहती हैं। बेशक मदिरा और मदिरा और मदिरा .... । यहाँ बाकी आपकी कल्पना पर छोड़े देते हैं... ।
भारत में अब सालाना आई पी एल उत्सव मनाया जाता है । इस आई पी एल महीने में भारत के सभी महानगर लॉस वेगस की तर्ज़ पर महान जुआ-घर बन जाते हैं। सभी टीवी चैनल अखबार बिक जाते हैं - खबर एक ही है, सोच एक ही है , प्रेरणा भी एक ही है - अनुमान लगायें इस बार आई पी एल कौन जीतेगा ? टीमों के खिलाडी करोड़ों में खरीदे जा रहे हैं - बोली लगाकर ! टीमें खरीदी जा रही हैं अरबों की बोली लगा कर !! टीमों का सार्वजनिक चेहरा फ़िल्मी सितारों को बनाया जा रहा है ! टीमों की बंदरबांट बी सी सी आई को हांकने वाले उद्योगपति आपस में रजामंदी से कर ले रहे हैं ! भारत सरकार के मंत्री अपना पोर्टफोलियो का काम छोड़कर मित्रों एवं बिज़नस पार्टनर आदि को मालिकाना हिस्सा दिलवाने में एडी चोटी का दम लगाये हुवे हों । और इस सारे काले कारोबार में असल बात कोई नहीं उठा रहा हो की आखिर पैसे की यह बारिश क्यों और कहाँ से हो रही है ???? ऐसा कौन सा नुस्खा है जिससे पचास करोड़ टूर्नामेंट भर में सौ करोड़ बन जायेंगे ??? दो सौ करोड़ बढ़कर चार सौ करोड़ बन जायेंगे ??? उद्योगपतियों को आसानी से पैसे कई गुना करने का आसान तरीका क्यों इतना पसंद आ रहा है ??? और ऐसा नहीं है तो वे महज एक क्रिकेट टूर्नामेंट के प्रति इतने दीवाने क्यों हुवे जा रहे हैं ???
प्रश्न यह भी है की बम्बई और बंगलोर में रेस्तोरां में गरीब बार-बालाएं नाचने से प्रतिबंधित हैं - इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ मान लिया जाता है ; जबकि अल्प वस्त्र-धारी श्वेत चरम विदेशी नर्तकी हर चौके छक्के पर मंच पर चढ़कर नाचने लगे तो इसे भारतीय संस्कृति का नया स्वरुप घोषित कर दिया गया है । और यह नृत्य चालीस-पचास हज़ार दर्शकों के सामने कराया जाता है ।
समझने वाली बात एक और भी है - अंतर-राष्ट्रीय टीवी प्रसारण के ज़रिये अब आप दुनिया के किसी भी कोने में बैठे हों वहीँ से क्रिकेट के सुट्टा बाज़ार में अपनी बोली लगा सकते हैं और यकीनन जैसा की नियम है जुआघर कभी भी पैसे नहीं हारता , जुआरी ही बारी बारी से पैसे हारते हैं ।

देवयानी।

1 comment:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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