अपने दिलचस्प देश - भारत में राजनीति विचित्र रास्तों से गुजरती है। आजकल नारी आरक्षण का बावेला मचा हुआ है । इसी देश ने बार बार इंदिरा गाँधी को प्रधान मंत्री बनाया , आज देश की सबसे बड़ी पार्टी की नेत्री उन्हीं देवी की बहू सोनिया गाँधी हैं। उत्तर प्रदेश पर विशाल बहुमत से एकछत्र सरकार चलानेवाली मायावती जी बहुजन समाज पार्टी की सवेसर्वा अर्थात सुप्रीमो हैं। aiadmk की सुप्रीमो यानी एकछत्र नेत्री देवी जयललिता हैं। पश्चिम बंगाल की अगली अनुमानित मुख्य मंत्री देवी ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस दल की एकछत्र नेत्री हैं। यहाँ तक कि भारतीय जनशक्ति पार्टी कि सर्वेसर्वा भी एक महिला हैं - देवी उमा भारती ।
इन सभी देवियों को दबंग राजनीतिक हस्ती बनने में किसी महिला आरक्षण कि ज़रुरत नहीं पड़ी । प्रधानतः पुरुषों ने ही आगे बढ़कर इनके नेतृत्व को सलाम किया और फिर सिजदा भी किया। आज यह समझने की ज़रुरत है की नारी आरक्षण को किसी तरह की क्रांति घोषित करने वाले, इस देश के साथ कितनी बड़ी जालसाजी कर रहे हैं। क्या इतनी सारी देवियाँ सुप्रीमो होते हुवे भी मजबूर होकर पुरुषों को चुनावी टिकट दे देती हैं ???? अतः ज़रूरी हो जाता है की ऐसा कानून बने जिससे नारी को ३३ प्रतिशत सीटों की गारंटी हो ????
कड़वी सच्चाई यह है कि भगवती देवी कभी भी ब्रिंदा करात , सुषमा स्वराज या हेमा मालिनी या प्रियंका गाँधी के खिलाफ चुनाव जीत नहीं सकती। और पत्थर तोड़ने वाली भगवती देवी को टिकट देने का साहस केवल कोई समाजवादी पार्टी ही कर सकती है मसलन राजद (राष्ट्रीय जनता दल ) . तो फिर खेल आखिर क्या चल रहा है ?
खेल सिर्फ इतना ही है कि दलित वोट पूरी तरह से मायावती जी को समर्पित हो चूका है । मुस्लिम अल्पसंख्यक वोट समाजवादियों कि तरफ झुका रहेगा और ओबीसी यानी पिछड़ों को कांग्रेस, भाजपा कि नीयत पर हमेशा ही संदेह बना रहा। ऐसे में महिला आरक्षण कांग्रेस पार्टी का अपना ख़ास फ़ॉर्मूला इजाद किया गया है जिससे यह पार्टी अपने बूते पर सरकार बना सके। विधायिका में महिला आरक्षण वास्तविकता में क्रांति के नाम पर भारतीय नारी के साथ एक बहुत बड़ा मजाक है। आश्चर्य तो यह है कि भाजपा भी इस बंदरबांट में अपने लिए फायदे ही फायदे देख रही है। और हमलोग समझ रहे थे कि भाजपा ने चुनाव जीतने का आखिरी नुस्खा इजाद कर लिया है।