election india watch: anna andolan kya keh raha hai ...?
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Monday, August 29, 2011
Friday, August 26, 2011
anna andolan kya keh raha hai ...?
कल आन्दोलन का दसवां दिन था, रामलीला मैदान के अन्दर - बाहर लोगों का हुजूम था और एक चौहत्तर साल का आदमी एक अंतराल पर खडाहोकर लोगों को संबोधित करता और उनमें जोश भर देता था. संसद के अन्दर की लीला भी असाधारण थी कभी नेतालोग मौके का लाभ उठाकर सरकार को 'जूते लगा' रहे थे कभी पूरा सदन बुज़ुर्ग से उपवास छोड़ देने की अपील कर रहा था. पर इस बुज़ुर्ग के चलाये आन्दोलन ने इस देश के इतिहास के इस एक लम्हे में हमारी संसद को अप्रासंगिक कर दिया है यह एक तल्ख़ सच्चाई है. रामलीला मैदान में चल रही जन-संसद भारत का ज्यादा बड़ा सच बनकर उभरी है.
रात देर तक cnn -ibn चैनल पर आयोजित चर्चा में यह अद्भुत खोज सामने आयी कि बुद्धिजीवी समाज और मीडिया सूत्रधार जो सातों दिन विषय पर उग्र चर्चाएँ चला रहे हैं उनमें से किसी ने भी जनलोकपाल बिल का मसौदा नहीं पढ़ा है. आन्दोलनकारी मीडिया प्रतिनिधि तक ने भी नहीं...!!! गीता रामचंद्रन ने कहा कि 'मैंने पूरा पढ़ा है. ' गीता कि टिपण्णी थी कि यह प्रस्तावित बिल खौफनाक है ! यह बिल ऐसी एक विशाल निरीक्षक नौकरशाही का प्रस्ताव कर रहा है जो न सिर्फ संविधान के बुनियादी बनावट को चुनौती दे रहा है पर अत्यंत अव्यवहारिक सोच भी रखता है. पर सही परिप्रेक्ष्य के लिए यह स्वीकार करना भी ज़रूरी है कि सरकारी लोकपाल बिल इतना गया गुजरा है कि उस पर चर्चा करना भी निरर्थक है ! ( गीता कि टिप्पणियां ). संभव है कि जब जन-लोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया जा रहा था तो जस्टिस हेगड़े स्वयं को प्रथम लोकपाल के रूप में देख रहे थे , प्रशांत भूषण खुद को और शायद किरण बेदी भी ऐसी ही कुछ उम्मीद बाँधें हों. और यही वजह रही कि प्रस्तावित बिल में लोकपाल को असीमित सत्ता दे दी गयी . पर इस सबके बीच यह निर्विवाद सच है कि भारत के लोग भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके हैं और पानी नाक तक आ पहुंचा है ! हमारा राजनीतिक वर्ग यह बात जितनी जल्दी समझ ले देश के लिए और उनके लिए भी उतना ही अच्छा होगा.
(लम्बे अंतराल के बाद चिट्ठे पर लौटने कि वजह भाई अफलातून कि शिकायत रही कि संवाद का यह माध्यम सिलसिलेवार बना रहना चाहिए, उनका आभार !)
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